Tuesday, February 07, 2023

गुफ्तुगू

गुफ्तुगू कुछ ऐसी हुई
की हम जान तो गए
पर समझ नहीं पाए
शिकायतों के चिठे में
कुछ ऐसे खो गए
हाले दिल इस महफिल मैं 
अपना ही भूल गए


इस शोर की ढलती हुई ख़ामोशी मैं
एक पहचानी सी आहत हुई 
मुर्शीद मेरा मुझसे आके मिले 
सही और गलत के पार
एक शहर का पता दिया 
जहाँ ना मैं था ना तुम 
बस रू थी और रूबरू था 
सब मेरे मुर्शीद मैं घुल रहा था

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